Wednesday, March 9, 2016

कहानी संग्रह की समीक्षा का एक नमूना

                 कहानी संग्रह की समीक्षा
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पुस्तक :- इच्छाधारी लड़की
लेखक :- डॉ॰ राजेश श्रीवास्तव
प्रकाशक :- शब्द प्रकाशन, अलीगढ़
मूल्य :- 100 रु
संस्करण :- 2014
      इच्छाधारी लड़कीकहानी-संग्रह में लेखक ने बारह कहानियों की रचना की है। सभी कहानियों के कथानकों की विविधता, रचनाकार के विस्तृत अनुभव,प्रकांड ज्ञान व अत्यंत सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचय देती है। वे अपने खुले नयन,संवेदनशील हृदय और सक्रिय कलम से अपनी रचनाओं में स्मरणीयता के साथ-साथ पठनीयता जैसे गुणों को जन्म देकर हिंदी-जगत के सुधी पाठकवृंद को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे हैं।
      इस कहानी संग्रह की पहली कहानी इच्छाधारी लड़की है। इच्छाधारी लड़की जैसी अनेक अफवाहें समाज के सभी वर्गों को प्रभावित कर सकती है। इस मनोविज्ञान का सजीव वर्णन कहानीकार ने इस संग्रह में किया है।इस कहानी संग्रह की दूसरी कहानी आईनासमझदार लोगों के बीच वैचारिक मतभेद के कारण पैदा हो रहे झगड़ों की दास्तान है।लेखक ने पलाश के फूलकहानी में किसी दूर-दराज गाँव के स्कूल की खस्ता-हालत, वहाँ पढ़ने वाले बच्चों की अनुपस्थिति, सरपंच द्वारा स्कूल के कच्चे कमरों का दुरुपयोग के बावजूद एक ईमानदारी,आदर्शवादी और कर्तव्यनिष्ठ संविदा शिक्षक नीरज द्वारा उस स्कूल को नियमित रूप से चालू करने के लिए उठाई जाने वाली परेशानियों का एकदम यथार्थ चित्रण किया है। 
      ईहामृगकहानी में इला के पुत्र पुरुरवा और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी की प्रेमाख्यान का वर्णन है। इसी प्रकार जहाँ काली घटामुस्लिम परिवार में लड़की के मंगेतर की मौत पर देवर के साथ दादागिरी से निकाह करने की रिवाज के खिलाफ विरोध है, वहीं ठहरा हुआ समयकहानी में एक विधवा द्वारा पुनर्विवाह करने के लिए अपने आप को तैयार करने का एक मधुर स्वप्न है। खिड़की के बाहर बादलकहानी उस कॉलेज की कहानी है,जहां सीनियर कक्षाओं के छात्रों द्वारा जूनियर  कक्षाओं से प्रवेश लेने वालों छात्रों की रैगिंग ली जाने की प्रथा है। 
प्रारब्धकहानी गीता के दर्शन को उजागर करती है, जिसके अनुसार मनुष्य को अपने अर्जित कर्मों के साथ-साथ प्रारब्ध का भी फल भुगतना पड़ता है। सलोनीकहानी में भाषा,कल्प और शैली का एक अभिनव प्रयोग है।
      उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी जगत में प्राथमिक शिक्षा के उत्थान, स्त्रियों के शोषण,अधिकार की लड़ाई,असमानता, सामाजिक अंधविश्वासों,असामाजिकता के विरोध में विद्रोह के स्वर मुखरित करने वाला यह कहानी संग्रह पाठकों द्वारा पसंद किया जाएगा
समीक्षक :  परीक्षा में प्रश्नपत्र में निर्देशित नाम या क ख ग


Monday, February 15, 2016

न्यूज लेटर NEWS LETTER,Volume 2- 2015-16


कृपया  न्यूज लेटर NEWS LETTER, Volume-2- 2015-16 के  लिए यहाँ क्लिक करें -

News Letter- KV BKP ARMY- Vol 2

Monday, January 4, 2016

XII के पाठ्यक्रम में एक और विषय- 'समीक्षा'।

इस बार से सीबीएसई ने XII के पाठ्यक्रम में एक और विषय  जोड़ दिया है-  'समीक्षा'। नीचे आपकी सुविधा के लिए पद्य और गद्य- दोनों की समीक्षा के दो नमूने दिए जा रहे हैं। कृपया स्वयं पुस्तकें पढ़ें और समीक्षा लिखने का अभ्यास करें ।  



पुस्तक-समीक्षा(गद्य)

विविधा : भोजपुरी साहित्य का एक संदर्भ ग्रंथ

समीक्ष्य कृति : विविधा (संपादकीय आलेख संग्रह)

लेखक : पांडेय कपिल

प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, 3/9, इंद्रपुरी, पटना- 800024

प्रथम संस्करण : अक्टूबर, 2011, पृष्ठ संख्या : 482 , मूल्य : बारह सौ रुपये

      विविधा सुप्रसिद्ध आचार्य पांडेय कपिल द्वारा संपादित भोजपुरी पत्रिकाओं के संपादकीय आलेखों का संग्रह है।ये सभी आलेख उनके द्वारा संपादित लोग, उरेह एवं भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका (मासिक) के दिसंबर, 2001 तक के अंकों में छप चुके हैं।

      इसमें लेखक ने भोजपुरी से जुड़ी हस्तियों को जन्म, मृत्यु या किसी खास अवसर पर जब याद किया है तो  जैसे वे सभी परिचयात्मक कोश हो गए हैं। भविष्य में वे सभी उन पर शोध हेतु मानक सामग्री स्रोत हो सकते हैं।इन लेखों में उन्होंने पुराने लेखकों के साथ ही नए लेखकों को भी महत्त्व प्रदान किया है। आचार्य महेंद्र शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि स्थापित साहित्यकारों के साथ ही शशिभूषण सिंह शशि जैसे नवोदित रचनाकारों को भी उसी सम्मान के साथ याद किया गया है।

      इस पुस्तक को 1975 से 2001 तक के 26 वर्षों के भोजपुरी साहित्य एवं संस्कृति की धड़कनों के रूप में भी देखा जा सकता है।

      भोजपुरी में अराजक स्थितिजैसे लेखों से संपादक की चिंता समझ में आती है।इस पुस्तक में भाषा के मानकीकरण पर भी लेखक संवेदनशील है और इस अराजक स्थिति से उबरने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता। मानवाधिकार के उल्लंघन पर भी इनकी लेखनी खूब चली है।अमानुषिक अपराध : सामाजिक कलंक एवं फीजी सरकार के अत्याचार  इसी तरह के आलेख हैं। 

      सिलसिलेवार समय की नब्ज टटोलना आसान काम नहीं होता। इसके लिए बहुत जागरूक रहना पड़ता है। अपने संपादकीय में कारगिल जैसे राष्ट्रीय चिंता एवं गर्व पर भी लेखक सक्रिय दिखता है।इस तरह के काम हिंदी में जरूर मिल जाएँगे पर मेरी जानकारी में भोजपुरी में यह पहला ग्रंथ है, जिसमें पर्याप्त सामग्री अपने स्तरीय रूप में है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विविधा अपने छिटपुट रूप में भोजपुरी साहित्य का एक संदर्भ ग्रंथ है और भविष्य में शोधार्थी इसका प्रयोग खूब करेंगे।

समीक्षक : ....(परीक्षा में प्रश्नपत्र में निर्देशित नाम या क ख ग)



पुस्तक-समीक्षा((कविता)


पागल मन फिर बुन रहा सपनों का संसार
समीक्ष्य कृति : खोलो मन के द्वार
कवि  : गोविंद सेन
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
मूल्य : 60 रुपये

      पिछले कुछ दशकों से हिंदी कविता में दोहे पर बहुत कम कार्य हुआ है। गोविन्द सेन  ने अपनी नवीन पुस्तक खोलो मन के द्वार’  के माध्यम से आधुनिक सौन्दर्यबोध को एक नई दिशा दी है। 

      भारत में अधिकांश बच्चे पढ़ने, खेलने की उम्र में मेहनत मजदूरी करने को मजबूर हैं या उनका बचपन किसी न किसी बोझ से दबा हुआ है। लेखक इस चुप्पी, उदासी और बेचैनी को दूर करने का आह्वान करता है- दुनिया में सबसे बड़ी बचपन की मुस्कान।

      गोविन्द सेन ने आधुनिक सरकार की नब्ज को भी टटोलने की कोशिश की है। सत्ता चाहे किसी की भी हो, हमेशा जनता पिसती है। लेकिन कवि हार नहीं मानता -

      पत्थर दिल इंसान ने तोड़े स्वप्न हजार

      पागल मन फिर बुन रहा सपनों का संसार।

      सत्ता का रंग बदलते ही सबसे पहले सत्ता सुख के आदी मीडिया का भी रुख बदल जाता है। कवि उनके मुनाफे की हवस को नंगा करता है -

      बेच रहे हैं सनसनी सारे चैनल आज।

      सत्ता वादा करती है और मुकर जाती है। फिर सदा की तरह मनुष्य भगवान के दर पर चला जाता है। यहाँ कवि की चिंता जायज है। वह भगवान से भी गुहार लगाता है -

      कठिन दिनों से नित्य ही जूझ रहा इंसान

      अच्छे दिन आखिर कहाँ भटके हैं भगवान।

      गोविन्द सेन इस दौर के ऐसे कवि हैं जिन्होंने रहीम, कबीर आदि की छंद परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास तो किया ही है, आम आदमी के साथ अपनी चिंता को जोड़कर प्रगतिशीलता को एक नया आयाम देने की पुरजोर कोशिश की है।

समीक्षक :     ....(परीक्षा में प्रश्नपत्र में निर्देशित नाम या क ख ग)