कक्षा - बारह (आधार), सत्र- 2014-15 के लिए
विशिष्ट निर्देश :
1. किसी भी कविता का काव्य-सौंदर्य लिखते समय उसका भाव-सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य
दोनों ही लिखने होंगे|
2. कविता का प्रतिपाद्य लिखते समय अंक को ध्यान में रखते हुए भाव सौंदर्य को
यथापेक्षित विस्तार दिया जा सकता है|
3. भाषा की विशेषता बतानेवाले प्रश्न के लिए शिल्प सौंदर्य को यथापेक्षित विस्तार
दिया जा सकता है|
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काव्य-सौंदर्य
आत्मपरिचय
- हरिवंश राय बच्चन
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश जीवन को मधुकलश
मानकर मस्ती पीनेवाले कवि हरिवंश राय बच्चन की "आत्मपरिचय" कविता से
उद्धृत है | इन
काव्य-पंक्तियों मे कवि अपना परिचय देते हुए दुनिया से अपने दुविधा भरे संबंधों को
स्पष्ट कर रहा है | संसार की
जिम्मेवारी लेकर चलनेवाले कवि को संसार के व्यवहार से शिकायत तो है पर वह उसका
ध्यान नहीं रखता | उसका हृदय प्यार
बाँटता है | वह सुख और दुःख
दोनों ही स्थितियों में मग्न रहता है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | सरल एवं जीवंत भाषा|
शैली- गेय एवं आत्मकथात्मक शैली |
छंद-
तुकांत समान मात्राओं का छंद | गेय पद |
अलंकार-
1.अनुप्रास (जग जीवन,जग जिस,क्यों कवि कहकर,झूम झुके)
2.पुनरुक्ति प्रकाश (बना-बना)
3.विरोधाभास (रोदन का राग,शीतल वाणी में आग)
4.रूपक (भव-सागर) आदि |
एक गीत
- हरिवंश राय बच्चन
भाव-सौंदर्य - जीवन को पूरी ऊर्जा से जीनेवाले
कवि हरिवंश राय बच्चन ने प्रस्तुत गीत में जीवन को एक यात्रा पथ माना है | इसमें कवि ने रात्रि के आगमन से पूर्व मन में
उठनेवाली इच्छाओं एवं आशंकाओं को सहज व मार्मिक शैली में व्यक्त किया है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | सरल एवं जीवंत भाषा|
शैली- गेय |
छंद-
तेरह पंक्तियों का गीत | गेय पद |
अलंकार-
1.अनुप्रास (मुझसे मिलने)
2.पुनरुक्ति प्रकाश (जल्दी-जल्दी)
3.प्रश्नालंकार (मुझसे मिलने को कौन विकल ?आदि)
पतंग
- आलोक धन्वा
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश नयी कविता के
प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा की "पतंग" कविता से उद्धृत है | इस कविता में पतंग के माध्यम से बच्चों की
इच्छाओं और खुशियों का मनोहारी चित्रण किया गया है | इसमें पतंग का मानवीकरण करते हुए बाल मन के सपनों को साकार
होते हुए बताया गया है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | हिंदी के साथ ही देशज एवं संस्कृत के शब्दों का
भी प्रवाहमय सहज प्रयोग |
शैली-
बिंब प्रधान वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है |
छंद-
मुक्तछंद | लयबद्धता के अभाव
के बावजूद प्रवाह बना हुआ है |
अलंकार-
1.अनुप्रास (सुनहले सूरज)
2.मानवीकरण (पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ)
3.उपमा (डाल की तरह लचीले वेग से)
4.रूपक (दिशाओं के प्रयोग) आदि |
5.विरोधाभास (छतों को नरम बनाना)
कविता के बहाने
- कुँवर नारायण
भाव-सौंदर्य- आज का समय कविता के अस्तित्व को
लेकर आशंकित है क्योंकि यांत्रिकता का दबाव बढ़ रहा है| इस कविता में कवि कविता के अस्तित्व के प्रति जहाँ अपना
विश्वास प्रकट कर रहा है, वहीं कविता की
असीम संभावनाओं के बारे में भी बतला रहा
है| "कविता के बहाने" एक
यात्रा है,जो चिड़िया से आरंभ होती
है,फूल पर से होते हुए बच्चे
पर जाती है और वहाँ अनेक संभावनाएँ खोजती है|
शिल्प-सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | सरल एवं सहज शब्दावली |
शैली- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है |
अंतिम छंद में भविष्य की संभावनाओं को भी सरल
शैली में व्यक्त किया गया है |
छंद- मुक्तछंद, जिसमें लय और प्रवाहमयता का गुण भी मौजूद है|
अलंकार-
1.रूपक | कविता को उड़ान, खिलना और खेल कहा
गया है |
बात सीधी थी पर
- कुँवर नारायण
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश हमारी
पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-२ की
"बात सीधी थी पर" कविता से उद्धृत है | इसके रचनाकार हैं हिंदी के आधुनिक कवि कुँवर नारायण |
इस कविता में कवि कथ्य और माध्यम के द्वंद्व
उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात करता है | वह मानता है कि हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं,
ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित
खाँचा होता है | और, इसलिए अच्छी कविता का बनना इस बात पर निर्भर
करता है कि सही बात सही शब्द से जुड़े |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | इसमें हिंदी के
साथ ही उर्दू शब्दों का भी प्रयोग हुआ है | जैसे : जरा, मुश्किल, बेतरह, साफ आदि | सामान्य बोलचाल
से प्रभावित भाषा |
शैली- कवि की ईमानदारी से व्यक्त भावना
आत्मकथात्मक शैली का अनुभव कराती है |
छंद- मुक्तछंद, जिसमें पूर्ण प्रवाह के साथ ही लयबद्धता की झलक है |
अलंकार-
1.अनुप्रास(साफ़ सुनाई)
2.पुनरुक्तिप्रकाश (साथ-साथ, वाह-वाह|)
विशेष
(बात) का मूर्त रूप वर्णित हुआ है | मुहावरों का सटीक प्रयोग है |
कैमरे में बंद अपाहिज
- रघुवीर सहाय
भाव-सौंदर्य-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य्पुस्तक आरोह, भाग-2 की "कैमरे
में बंद अपाहिज" कविता से उद्धृत है | इसके कवि हैं प्रयोगवाद के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर रघुवीर
सहाय | शारीरिक चुनौती को झेलते
व्यक्ति से टेलिविजन कैमरे के सामने किस तरह के सवाल पूछे जाएँगे और कार्यक्रम को
सफ़ल बनाने के लिए उससे कैसी भंगिमा की अपेक्षा की जाएगी- इसका लगभग सपाट तरीके से
बयान करते हुए कवि ने इस कविता में एक तरह से पीड़ा के साथ दृश्य-संचार माध्यम के
संबंध को रेखांकित किया है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | अत्यंत सामान्य, बोलचाल के शब्दों का प्रयोग |
शैली- वर्णनात्मक शैली | साक्षात्कार का वर्णन और सपाटबयानी कविता को मार्मिक बना
रही है |
छंद- मुक्तछंद, प्रवाहमयता का गुण | "स्वाभाविकता" के गुण के कारण कविता में आकर्षण |
अलंकार-
1.अनुप्रास (परदे पर, बहुत बड़ी आदि)
सहर्ष स्वीकारा है
- गजानन माधव मुक्तिबोध
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश नयी कविता के
प्रसिद्ध कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की "सहर्ष स्वीकारा है" कविता से
उद्धृत है | इन
काव्य-पंक्तियों मे कवि यह बताना चाहता है कि उसके जीवन में उसे जो कुछ भी मिला,
वह सब उसने खुशी-खुशी स्वीकार किया है क्योंकि
उससे संबंध रखनेवाली हर चीज को उसकी ‘प्रिय’ प्यार करती है | कवि को अपने प्रिय के प्रति भावार्द्रता कमजोर
करती है | वह प्रेम और स्नेह की
मधुर चाँदनी त्याग कर गहन अंधकार और अमावस्या की कामना कर रहा है तथा स्नेह
देनेवाली को भूल जाना चाहता है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | हिंदी के साथ ही उर्दू एवं संस्कृत के शब्दों
के भी प्रयोग |
शैली-
मौलिक आत्मकथात्मक शैली में वर्णन किया गया है |
छंद-
मुक्तछंद | लयबद्धता के अभाव
के बावजूद प्रवाह बना हुआ है |
अलंकार-
1.अनुप्रास (सहर्ष स्वीकारा, गरबीली गरीबी, विचार वैभव)
2.पुनरुक्ति प्रकाश (मौलिक है-मौलिक है, पल-पल, भर-भर)
3.उत्प्रेक्षा (मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात भर/मुझ
पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है |)
4.रूपक (ममता के बादल) आदि |
उषा
- शमशेर बहादुर सिंह
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश नयी कविता के
सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर शमशेर बहादुर सिंह रचित "उषा" कविता से उद्धृत है |
यह कविता हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-२ में संकलित है | इस कविता में सूर्योदय से पूर्व का सुन्दर प्राकृतिक
दृश्यांकन किया गया है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | शब्दावली अत्यंत सरल और सहज | अधिकतर शब्द ग्रामीण परिवेश का प्रतिनिधित्व
करते हुए दिखाई देते हैं |
शैली-
प्रात:कालीन दृश्यावली के पल-पल बदलते सौंदर्य का चित्रण कहीं चित्रित,
कहीं वर्णित, तो कहीं बिंब माध्यम से प्रस्तुत किया गया है | इसे वर्णनात्मक और बिंब माध्यम से प्रस्तुत किया गया है| इसे वर्णनात्मक और बिंब प्रधान -दोनों ही शैलियों में रखा
जाएगा|
छंद-
मुक्तछंद
अलंकार-
1.उपमा
(आँख जैसे)
2.उत्प्रेक्षा
(राख से लीपा हुआ चौका, बहुत काली सिल,)
आदि | समस्त कविता बिंबात्मक है |
बादल राग
- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश छायावाद के
प्रसिद्ध स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की "बादल
राग" कविता से उद्धृत है | इस कविता में कवि
बादल के माध्यम से जनसामान्य के दुःख और व्यथा को मिटाने की क्रांति करना चाहता है
| किसान और मजदूर जैसे
मेहनतकश लोगों की आकांक्षाएँ बादल को नव निर्माण के राग के रूप में बुला रही हैं |
कवि बादल रूपी क्रांति से समाज में आमूल-चूल
परिवर्तन करना चाहता है | क्रांति सदैव
अभावग्रस्त लोगों के लाभ एवं पक्ष के लिए होती है | इस कविता में प्राकृतिक उपादान के माध्यम से क्रांति का
आह्वान करता हुआ कवि बादल को समाज,देशऔर
श्रमजीवियों की दुर्दशा से अवगत कराता है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) | तत्सम और तद्भव दोनों ही प्रकार के शब्दों की
भरमार |
शैली-
मौलिक वर्णनात्मक प्रवाहपूर्ण शैली का प्रयोग| कार्ल मार्क्स का क्रांति सिद्धांत भी शैली का प्रमुख अंग
है |
छंद-
मुक्तछंद | लयबद्धता के अभाव
के बावजूद प्रवाह बना हुआ है |
अलंकार-
1.अनुप्रास (समीर सागर,सजग सुप्त)
2.पुनरुक्ति प्रकाश (फिर-फिर,बार-बार,सुन-सुन,शत-शत, हिल-हिल.खिल-खिल)
3.विरोधाभास (सजग सुप्त)
4.रूपक (समीर सागर,आतंक भवन,आतंक अंक आदि |)
मुहावरे- हृदय थामना |
कवितावली से
- तुलसीदास
-क-
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी
तुलसीदास रचित कवितावली से उद्धृत है | कलियुग की विविध विषमताओं से ग्रस्त समाज तुलसी का युगीन यथार्थ है | इस छंद में कवि का कहना है कि इस समाज में सभी
अपना कार्य पेट की आग के वशीभूत होकर ही किए जा रहे हैं | उनका मानना है कि यह आग केवल श्रीराम की कृपा से ही बुझ
सकती है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक ब्रज और अवधी का मिश्रित प्रयोग |
छंद- कवित्त
अलंकार-
1.अनुप्रास (किसबी किसान कुल,चाकर चपल, चोर चार,गहन गन,अहन अखेटकी,बेटा बेटकी)
2.रूपक (राम घनस्याम)
-ख-
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी
तुलसीदास रचित कवितावली से उद्धृत है | इस छंद में तुलसी समाज की दुर्दशा का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि आजीविका के
साधनों से विहीन सभी परेशान लोग मात्र एक ही बात सोच रहे हैं कि क्या करें,
कहाँ जाएँ ? ऐसे में एकमात्र विकल्प श्रीराम ही हैं, जो दरिद्रता रूपी रावण का अंत कर सकते हैं |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक ब्रज और अवधी का मिश्रित प्रयोग |
छंद- कवित्त
अलंकार-
1.अनुप्रास (बनिक को बनिज,चाकर को चाकरी,सीद्यमान सोचबस,साकरे सबैं पै,राम रावरे,दारिद दसानन दबाइ दुनी दीनबंधु,दुरित दहन देखि)
2.पुनरुक्तिप्रकाश (एक एकन)
3.रूपक (दारिद दसानन)
-ग-
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी
तुलसीदास रचित कवितावली से उद्धृत है | इस छंद में भक्ति की गहनता और सघनता से उपजे तुलसी के आत्मविश्वास का पूरा
परिचय मिलता है | उनका कहना है कि
मैं तो राम का गुलाम हूँ | जो जिसके मन में
हो कहे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता |
मुझे किसी से कोई लेना देना नहीं | मुझे राम के अलावे इस समाज या संसार से कोई
मतलब नहीं है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक ब्रज और अवधी का मिश्रित प्रयोग |
लोकप्रचलित लोकोक्तियों का प्रयोग ( लैबो को
एकु न दैब को दोऊ ) |
छंद- सवैया
अलंकार-
1.अनुप्रास ( बेटी सौ बेटा, कहै कछु )
लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप
- तुलसीदास
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी
तुलसीदास रचित "रामचरितमानस" के उत्तरकांड से उद्धृत है| इसमें राम-रावण युद्ध में मेघनाद के शक्तिबाण से आहत
लक्ष्मण की मूर्च्छा और राम का विलाप वर्णित है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- अवधी| लोकप्रचलित मुहावरों का प्रयोग ( जैसे- कवन मुहु लाई / सिर
धुनेऊ )
शैली-
राम के दुःख का अत्यंत भावपूर्ण शैली में वर्णन किया गया है |
छंद- चौपाई, दोहा और सोरठा (प्रभु प्रलाप.......बीर रस)|
अलंकार-
1.अनुप्रास ( पाइ पद,बाहु बल,प्रभु पद प्रीति,मन महुँ,पुनि पुनि पवनकुमार,बोले बचन,दुखित देखि,बच बिकलाई,जौं जनतेउ,बन बंधु बिछोहू,जाहिं जग,बारहिं बारा,जिय जानहुँ,करिबर कर,बंधु बिन,जौं जड़,अब अपलोकु,तात तासु तुम,बहु बिधि,सोचत सोच,स्रवत सलिल,प्रभु प्रलाप,प्रभु परम,तबहिं ताहि,कथा कही,अतिकाय अकंपन )
2.पुनरुक्तिप्रकाश ( पुनि-पुनि, महा-महा )
3.उत्प्रेक्षा ( जिमि करुना मँह बीर रस, मानहुँ काल देह धरि वैसा ) आदि |
गज़ल
- फ़िराक गोरखपुरी
अवतरण- प्रस्तुत शेर (काव्यांश) के रचनाकार
उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं | यह हमारी पाठ्यपुस्तक "आरोह" भाग-२ में संकलित है
|
शेर 1- नौरस.................................तोले है |
प्रसंग- इसके माध्यम से शायर प्रकृति के साथ
अपने मन के जुड़ाव को सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त कर रहा है |
भाव- शायर कहता है कि नवीन रसों से पूर्ण कली
की पंखुड़ियों की गाँठें खुल गई हैं | उनके खिलने से उपवन रंगीन हो गया है और महकने लगा है | ऐसा लगता है जैसे रंग और सुगंध रूपी पक्षी पंख लगाकर उड़ने
को तैयार हों |
शेर 2- तारे आँखें.........................बोले हैं |
भाव- इस शेर में सामान्य रुप से प्राकृतिक
परिवर्तन दिन रात को भी विशेष ढंग से व्यक्त किया गया है | फ़िराक लिखते हैं कि तारे आँखें झपका रहे हैं और सृष्टि का
कण-कण नींद में डूबा हुआ है | स्पष्ट है,
समस्त वातावरण पर रात की कालिमा छाई हुई है |
शायर हमें संबोधित करते हुए कहते हैं कि यारो !
यह रात का सूनापन कुछ बोल रहा है | शेर को पढ़कर
एहसास होता है कि लेखक ने स्वयं सन्नाटे की आवाज सुनी है |
अलंकार-
1."जर्रा-जर्रा" में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
है |
2."तारों का आँखें झपकाना" में मानवीकरण है |
3."सन्नाटे का बोलना" में विरोधाभास अलंकार
है |
शेर 3- हम हों या.............................रो ले हैं |
भाव-
कवि ने इस शेर मे दिल का गहरा दुख बयान किया है| कवि स्वयं और स्वयं के भाग्य से नाराज है और यह भी जानता है
कि वह और उसका भाग्य- दोनों अलग -अलग नहीं हैं| कवि का मन दुःख से इतना भर गया है कि वह अपनी किस्मत पर
रोता है और उसकी किस्मत उस पर रोती है |
तात्पर्य यह है कि कवि घोर निराशा से भर गया है
और अपने आपको ही कोस रहा है |
विशेष:
1."किस्मत हमको रो ले है" में अमूर्त का
मूर्त चित्रण है|
शेर 4- जो मुझको.............................खोले हैं |
भाव- कवि उनसे खिन्न है जो दूसरों को बदनाम
करने की साजिश रचते हैं | शायर संसार के उन
लोगों से, आलोचकों से बहुत परेशान
है जो दूसरों को बदनाम करने की साजिश रचते हैं | वह कहना चाहता है कि दूसरों की निंदा करनेवाले सोचते हैं कि
वे दूसरों का भेद खोल रहे हैं, मगर वास्तविकता
यह है कि निंदा करके संसार को अपने निंदक रूप का परिचय दे रहे हैं | वे नहीं जानते कि निंदक को संसार सबसे पहले
बुरा कहता है |
अलंकार
1."मेरा परदा खोले है" में विरोधाभास है |
शेर 5- ये कीमत.................................हो ले है |
भाव-
इस शेर में नायिका के आकर्षक सौंदर्य के प्रभाव का अंकन किया गया है |
नायक नायिका से कहता है कि मैं पूरे होशो-हवास
में अर्थात् विवेक के साथ तुम्हारे प्रेम की यह कीमत अदा कर रहा हूँ | तुम्हारे आकर्षक सौंदर्य का प्रभाव यह है कि
तुझे पाने का व्यापार करनेवाले तुम्हारे दीवाने भी हो जाते हैं | यहाँ एक रूप का सौदागर प्रेम का पुजारी बन गया
है|
शेर 6- तेरे गम के पासे..................................रो ले है |
भाव-
ऐकांतिक क्षणों में कवि के मन का दुःख प्रकट हुआ है | कवि के पास किसी का गम है जिसे वह संसार के
सामने जाहिर करना नहीं चाहता और उसे यह भी खयाल है कि संसार क्या कहेगा | गम की मर्यादा और लोक-लाज के कारण वह किसी पर
भी अपना दुःख प्रकट नहीं करता | जब वह दर्द असह्य
हो जाता है तो वह चुपके-चुपके यानी सबसे छिपकर रोता है |
अलंकार
1."चुपके-चुपके" में पुनरुक्तिप्रकाश है |
शेर 7- फ़ितरत.........................................खो ले हैं |
भाव-
यहाँ प्रकृति द्वारा सुनिश्चित एक विशेष सूत्र की ओर संकेत किया गया है|
कवि का मानना है कि प्रकृति में यह सुनिश्चित
है कि हम जितना त्याग करते हैं, उतना ही हमें
मिलता है| यह बात प्रेम और सौन्दर्य
के संदर्भ मे भी सच है | प्रेम में जो
जितना डूबता है , उतना ही प्रेम की
समीपता को अनुभव करता है | एक भाव यह भी है
कि हम अपने अहम का जितना त्याग करते हैं, उतना ही अपने प्रिय का प्यार हासिल कर पाते हैं |
शेर 8- आबो-ताब.....................................रो ले हैं |
भाव-
इसमें कवि पाठकों से चमक-दमक पर न जाकर कविता के सौन्दर्य को स्वयं देखने
का आग्रह करता है | उसका कहना है कि
आपके पास भी आखें हैं - देखिए और अनुभव कीजिए | ये जगमगाते हुए शेर हैं ; यह उन्हीं शेरों की चमक है अथवा यह समझिए कि हमारे हृदय की
पीड़ा ही शेरों मे ढल गई है | वास्तविकता स्वयं
प्रकट हो रही है , बताने की जरूरत
नहीं है |
शेर 9- ऐसे में तू......................................खोले हैं |
भाव-
विपत्ति में ईश्वर की या अपने प्रिय की याद आती है | आसमान में जब फ़रिश्ते (ईश्वर के दूत) , गुनाहों का अध्याय खोलते हैं तो महफ़िल के सभी
शराबियों को तेरी याद आती है| भाव यह है कि जो
जीवन भर मदिरा पान करते रहे, फ़रिश्तों के पास
पहुँचकर उन्हें तेरी याद आती है |
शेर 10- सदके फ़िराक................................बोले हैं |
भाव-
यहाँ शायर अपनी शायरी की प्रशंसा करता है | फ़िराक कहते हैं कि वे अपनी बेहतरीन शायरी पर कुर्बान हैं |
उन्हें यह आश्चर्य होता है कि उनकी लेखनी में
मीर जैसे प्रसिद्ध शायर की आवाज कैसे आ गई | उन्हें अपनी गजलों में मीर जैसी प्रसिद्ध शायरी का सुखद भ्रम
होता है |
शिल्प-सौंदर्य
भाषा : हिंदी , उर्दू और बोलचाल के शब्दों का खुल कर प्रयोग किया गया है |
शैली : वर्णनात्मक (1,2,3), भावनात्मक (4,5,6), भावनाप्रधान, वर्णनात्मक शैली, जो कहीं-कहीं
नीति के दोहों की याद दिलाती है |
छंद : हिंदी में शेरों की रचना का नूतन प्रयोग
है |
छोटा मेरा खेत
- उमाशंकर जोशी
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश नयी कविता के
प्रसिद्ध कवि उमाशंकर जोशी की "छोटा मेरा खेत" कविता से उद्धृत है |
छोटा मेरा खेत नामक पूरी कविता ही एक रूपक है |
इसमें कवि स्वयं को कृषक और कवि कर्म को कृषि
मानता है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) |
शैली-
सामान्य सी बातों में असामान्य अर्थ खोजनेवाली शैली |
छंद-
मुक्तछंद |
अलंकार-
1.अनुप्रास (पल्लव पुष्पों)
2.मानवीकरण (कल्पना के रसायनों को पी)
बगुलों के पंख
- उमाशंकर जोशी
भाव-सौंदर्य - प्रस्तुत पद्यांश नयी कविता के
प्रसिद्ध कवि उमाशंकर जोशी की "बगुलों के पंख" कविता से उद्धृत है |
इस कविता में कवि ने संध्या के समय काले बादलों
से घिरे आकाश में उड़ी जा रही सफेद बगुलों की पंक्ति का चित्रण किया है | कवि इस सौंदर्य में ऐसा उलझ गया है कि सब कुछ
भूलकर उसकी दृष्टि इस दृश्य के साथ ही बँध गई है |
शिल्प सौंदर्य
भाषा- मानक हिंदी (खड़ी बोली) |
शैली-
बिंब प्रधान शैली |
छंद-
मुक्तछंद |
अलंकार-
1.अनुप्रास ( बँधे बगुलों,साँझ की सतेज,रोक रक्खो,बँधी बगुलों )
2.पुनरुक्ति प्रकाश (हौले-हौले)
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